मुददतों से है इंतजार जिसका वो बारिश अभी बरसी कहां। मुददतों से है इंतजार जिसका वो बारिश अभी बरसी कहां।
यह ज़िन्दगी है यारों, यहां रोज़ लगता एक मेला है। यह ज़िन्दगी है यारों, यहां रोज़ लगता एक मेला है।
A poem about changing the centres A poem about changing the centres
अब तो मुस्कराने की ना जाने वजह कौन है.. अब तो मुस्कराने की ना जाने वजह कौन है..
जिसको रोटी टुकड़ों में मिली खाने को वो कोटि कोटि धन्यवाद हज़ारों दे गया। जिसको रोटी टुकड़ों में मिली खाने को वो कोटि कोटि धन्यवाद हज़ारों दे गया।
जिन्दगी फासला है मंजिल का, जिसको तय करते उम्र कट जाती। जिन्दगी फासला है मंजिल का, जिसको तय करते उम्र कट जाती।